पाठ - 5, प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी (NOTES)

 कक्षा - 9वीं 

विषय - भूगोल 

पाठ - 5 

प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी (NOTES)

अक्षत वनस्पति - वनस्पति का वह भाग जो कि मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप पैदा होता है और लम्बे समय तक उस पर मानवी प्रभाव नहीं पड़ता उसे अक्षत वनस्पति कहते हैं | 

देशज - वह वनस्पति जो कि मूलरूप से भारतीय है उसे देशज वनस्पति कहते हैं | 

विदेशज - वह वनस्पति जो भारत के बाहर से आई है उन्हें विदेशज वनस्पति कहते हैं | 

वनस्पति जगत - किसी विशेष क्षेत्र में किसी समय में पौधों की उत्पत्ति से है | 

वनस्पति तथा वन्य प्राणियों में विविधता के कारण 

धरातल 

भूभाग - भूमि का वनस्पति पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है | धरातल के स्वभाव का वनस्पति पर बहुत प्रभाव पड़ता है उपजाऊ भूमि पर प्राय कृषि की जाती है | ऊबड़ तथा असमतल भूभाग पर जंगल तथा घास के मैदान हैं जो वन्य प्राणियों को आश्रय देते हैं |

मृदा - अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग प्रकार की मृदा पाई जाती है जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति का आधार है जैसे  कि मरुस्थल की बलुई मिट्टी में कंटीली झाड़ियाँ तथा नदियों के डेल्टा क्षेत्र में पर्णपाती वन पाए जाते हैं | 

जलवायु 

तापमान - वनस्पति की विविधता तथा विशेषताएँ तापमान और वायु की नमी पर भी निर्भर करती हैं | तापमान में गिरावट वनस्पति के पनपने और बढ़ने को प्रभावित करती हैं |

सूर्य का प्रकाश - किसी भी स्थान पर सूर्य के प्रकाश का समय, उस स्थान के अक्षांश, समुद्र तल से ऊँचाई एवं ऋतु पर निर्भर करता है |प्रकाश अधिक समय तक मिलने के कारण वृक्ष गर्मी की ऋतु में जल्दी बढ़ते हैं |    

वर्षण - वर्षा भी वनस्पति की विविधता को प्रभावित करती है | अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में सघन वन पाए जाते हैं | 

वन मनुष्य के लिए क्यों आवश्यक हैं ?

  • वन नवीकरण योग्य संसाधन हैं और वातावरण की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं |
  • वन स्थानीय जलवायु, मृदा अपरदन तथा नदियों की धारा नियंत्रित करते हैं |
  • ये बहुत सारे उद्योगों के आधार हैं तथा कई समुदायों को जीविका प्रदान करते हैं |
  • ये पर्यटकों को आकर्षित करते हैं |
  • ये पवन तथा तापमान को नियंत्रित करते हैं और वर्षा लाने में सहायता करते हैं |
  • इनसे मृदा को जीवाश्म मिलता है और वन्य प्राणियों को आश्रय |

भारतीय प्राकृतिक वनस्पति में बदलाव के कारण/वन्य क्षेत्र कम होने के कारण 

  • कृषि के लिए अधिक क्षेत्र की माँग 
  • उद्योगों का विकास
  • शहरीकरण की परियोजनाएँ 
  • पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था 

पारिस्थितिक तंत्र - किसी भी क्षेत्र के पादप तथा प्राणी आपस में तथा अपने भौतिक पर्यावरण से अंतर्संबंधित होते हैं और एक पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं | 

जीवोम - एक विशिष्ट प्रकार की वनस्पति या प्राणी जीवन वाले विशाल पारिस्थितिक तंत्र को जीवोम कहते हैं | जीवोम की पहचान पादप पर आधारित होती है | 

वनस्पति के प्रकार 

  1. उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन 
  2. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन 
  3. उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन तथा झाड़ियाँ 
  4. पर्वतीय वन 
  5. मैंग्रोव वन  
1. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन 
  • ये वन पश्चिमी घाट के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों, असम के ऊपरी भागों तथा तमिलनाडु के तट तक सीमित हैं |
  • ये उन क्षेत्रों में विकसित होते हैं जहाँ 200 से०मी० से ज्यादा वर्षा के साथ एक थोड़े समय के लिए शुष्क ऋतु पाई जाती है | 
  • इन वनों में वृक्ष 60 मी० या इससे अधिक ऊँचाई तक पहुँचते हैं | 
  • इन वनों में पेड़ों के कई स्तर देखने को मिलते हैं 
  • पतझड़ का कोई निश्चित समय नहीं होता इसलिए ये वन साल भर हरे-भरे लगते हैं | 
  • इन वनों में पाए जाने वाले व्यापारिक महत्व के वृक्ष हैं आबनूस, महोगनी, रोज़वुड, रबड़ और सिंकोना |
  • इन वनों में पाए जाने वाले जानवर हैं हाथी, बंदर, लैमूर और हिरण | एक सींग वाले गैंडे असम और पश्चिम बंगाल के दलदली क्षेत्र में मिलते हैं | 
2. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन 
  • ये भारत के सबसे बड़े क्षेत्र में फैले हुए हैं | 
  • इन्हें मानसूनी वन भी कहते हैं |  ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 70 से०मी० से 200 से०मी० तक वर्षा होती है 
  • इन वनों में वृक्ष ग्रीष्म ऋतु में छ: से आठ सप्ताह के लिए अपनी पत्तियाँ गिरते हैं |
जल की उपलब्धता के आधार पर इन वनों को दो भागों में बाँटा गया हैं :
1. आर्द्र पर्णपाती वन 
  • ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 100 से०मी० से 200 से०मी० तक वर्षा होती है | 
  • ये वन भारत के पूर्वी भागों, उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालय के गिरिपद प्रदेशों, झारखंड, पश्चिमी उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढालों में पाए जाते हैं | 
  • सगोन इन वनों की सबसे प्रमुख प्रजाति है |
  • बांस, साल, शीशम, चंदन, रवैर, कुसुम, अर्जुन तथा शहतूत इन वनों में पाए जाने वाले व्यापारिक महत्व के वृक्ष हैं | 
2. शुष्क पर्णपाती वन
  • ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 70  से०मी० से 100  से०मी० के बीच होती है |
  • ये वन प्रायद्वीपीय पठार के ऐसे वर्षा वाले क्षेत्रों, उत्तर-प्रदेश तथा बिहार के मैदानों में पाए जाते हैं |
  • इन वनों में सागौन, साल, पीपल तथा नीम के वृक्ष उगते हैं | 
3. कंटीले वन तथा झाड़ियाँ 
  • जिन क्षेत्रों में 70 से०मी० से कम वर्षा होती है वहाँ कंटीले वन तथा झाड़ियाँ पाई जाती हैं | 
  • इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है जिनमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा के अर्ध शुष्क क्षेत्र शामिल हैं 
  • अकासिया, खजूर, यूफ़ोरबिया तथा नागफनी इन वनों में पाए जाते हैं |
  • इन वनों में वृक्ष बिखरे हुए होते हैं इनकी जड़ें लंबी तथा पानी की तलाश में चारों ओर फैली रहती हैं | पत्तियाँ छोटी होती हैं जिनसे वाष्पीकरण कम से कम हो सके | 
  • इन वनों में चूहे, खरगोश, लोमड़ी, भेड़िए, शेर, जंगली गधा, घोड़े तथा ऊँट पाए जाते हैं | 
4. पर्वतीय वन 
  • पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी अंतर दिखाई देता है | 
  • 1,000  मी० से 2,000 मी० तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं | इनमें चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट जैसे वृक्षों की प्रधानता होती है | 
  • 1,500 मी० से 3,000 मी० की ऊँचाई के बीच शंकुधारी वृक्ष जैसे चीड़ (पाइन), देवदार, सिल्वर-फर, स्प्रूस, सीडर आदि पाए जाते हैं | 
  • ये वन हिमालय की दक्षिणी ढलानों, दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत के अधिक ऊँचाई वाले भागों में पाए जाते हैं 
  • अधिक ऊँचाई पर प्राय: शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान पाए जाते हैं | 
  • 3,600 मी० से अधिक ऊँचाई पर शीतोष्ण कटिबंधीय वनों तथा घास के मैदानों का स्थान अल्पाइन वनस्पति ले लेती है | सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं | 
  • इन वनों में कश्मीरी महामृग, चितरा हिरण, जंगली भेड़, खरगोश, तिब्बतीय बारहसिंघा, याक, हिम तेंदुआ, गिलहरी, रीछ, आईबैक्स, कहीं-कहीं लाल पांडा, घने बालों वाली भेड़  तथा बकरियाँ पाई जाती हैं | 
5. मैंग्रोव वन 
  • यह वनस्पति तटवर्तीय क्षेत्रों में जहाँ ज्वार-भाटा आते हैं वहाँ पाई जाती है | 
  • घने मैंग्रोव एक प्रकार की वनस्पति है जिसमें पौधों की जड़ें पानी में डूबी रहती हैं | 
  • गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा भाग में यह वनस्पति मिलती है |
  • गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुंदरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनसे मजबूत लकड़ी मिलती है | नारियल, ताड़, क्योड़ा व ऐंगार के वृक्ष भी इन भागों में पाए जाते हैं | 
  • इस क्षेत्र का रॉयल बंगाल टाइगर प्रसिद्ध जानवर है | इसके अतिरिक्त कछुए, मगरमच्छ, घड़ियाल एवं कई प्रकार के सांप पाए जाते हैं | 
वन्य प्राणी 
  • स्तनधारी जानवर हाथी असम, कर्नाटक और केरल के उष्ण तथा आर्द्र वनों में पाए जाते हैं |
  • एक सींग वाले गैंडे पश्चिम बंगाल तथा असम के दलदली क्षेत्रों में रहते हैं |
  • कच्छ के रन तथा थार मरुस्थल में क्रमश: जंगली गधे तथा ऊँट रहते हैं |
  • भारतीय भैंसा, नील गाय, चौसिंघा, छोटा मृग तथा विभिन्न प्रजातियों वाले हिरण आदि कुछ अन्य जानवर हैं जो भारत में पाए जाते हैं 
  • भारत विश्व का अकेला देश है जहाँ शेर तथा बाघ दोनों पाए जाते हैं | भारतीय शेरों का प्राकृतिक वास स्थल गुजरात में गिर जंगल है | बाघ मध्य्प्रदेश तथा झारखंड के वनों, पश्चिमी बंगाल के सुंदरवन तथा हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं | 
  • बिल्ली जाति के सदस्यों में तेंदुआ भी है | यह शिकारी जानवरों में मुख्य है | 
  • लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों में याक पाए जाते हैं जो गुच्छेदार सींगों वाला बैल जैसा जीव है जिसका भार लगभग एक टन होता है | तिब्बतीय बारहसिंघा, भारल, जंगली भेड़ तथा कियांग भी यहाँ पाए जाते हैं | कहीं-कहीं लाल पांडा भी कुछ भागों में मिलते हैं | नदियों, झीलों तथा समुद्री क्षेत्रों में कछुए, मगरमछ और घड़ियाल पाए जाते हैं | घड़ियाल, मगरमछ की प्रजाति का एक ऐसा प्रतिनिधि है जो विश्व में केवल भारत में पाया जाता है | 
  • भारत में अनेक रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं मोर, बतख, तोता, मैना, सारस तथा कबूतर आदि कुछ पक्षी प्रजातियाँ हैं जो देश के वनों तथा आर्द्र क्षेत्रों में रहती हैं | 
पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन के कारण 
  • लालची व्यापारियों का अपने व्यवसाय के लिए अत्यधिक शिकार करना है |
  • औद्योगिक और रासायनिक अवशिष्ट तथा तेजाबी जमाव के कारण प्रदूषण, विदेशी प्रजातियों का प्रवेश |
  • कृषि तथा निवास के लिए वनों की कटाई |
देश की पादप और जीव सम्पति की सुरक्षा के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं        
1. भारत में 18 जीव मंडल निचय स्थापित किये गए हैं :
  • नीलगिरी 
  • नंदादेवी 
  • नोकरेक 
  • मानस 
  • सुंदरबन 
  • मन्नार की खाड़ी 
  • ग्रेट निकोबार 
  • सिमलीपाल 
  • डिब्रू-सैखोवा 
  • दिहांग-दिबांग 
  • पंचमढ़ी 
  • पन्ना 
  • कंचनजंगा 
  • अगस्त्यमाला 
  • कच्छ 
  • शीत मरुस्थल
  • शेषाचलन 
  • अचानकमार-अमरकंटक 
2. पादप उद्यानों को वित्तीय तथा तकनीकी सहायता देने की योजना बनाई गई है | 
3. शेर संरक्षण, गैंडा संरक्षण, भारतीय भैंसा संरक्षण तथा पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन के लिए कई योजनाएँ  बनाई गई हैं |  

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